मोक्ष पट - पुरातन विज्ञान का सांप सीढ़ी का खेल
- Archanna bhadoria
- Apr 24, 2024
- 3 min read
Updated: May 2, 2024
यह खेल आपको अपने जीवन के हर पल को समझना, उसकी गहराई तक पहुंचना सिखाता है; साथ ही अपने जीवन में परिवर्तन कैसे लाया जा सकता है इसकी समझ और जरूरत का विज्ञान भी सिखाता है।
ऋषि मुनियों ने, योगियों ने मानव मन (दिमाग) की भूल भुलैया को समझा, परखा और फिर उसे अलग-अलग अवस्थाओं में बांटा:
*अस्तित्व की - stages of life
*चेतन की - stages of consciousness
*ऊर्जा की - stages of energy
फिर इनको जीवन चरणों के अनुरूप नाम दिए और इन चरणों को एक खेल के रूप में ढाल दिया ।
आज हम इस खेल को 72 घरों के सांप सीढ़ी के रूप में खेल सकते हैं।
हर घर एक प्रसंग, एक अनुभव को बताता है..... अनुभव जो हमारी आत्मा शरीर के रूप में अहसास करती है ...... अच्छे बुरे अनुभव ।
जीवन में कुछ अनुभव ऐसे होते हैं जो हम बड़ी आसानी से जी लेते हैं - जब अच्छा समय होता है, जब सुखद अहसास होते हैं। ये अनुभव हमें पॉजिटिव बनाए रखते हैं।
पर जीवन में कुछ चुनौतियां, बाधाएं, रुकावटें, परेशानियां भी आती हैं, जिनका सामना करना मुश्किल होता है। ये सभी बुरे अनुभव हमारी आत्मा के घर, हमारे दिमाग की भूल भुलैया में कैद हमारे कर्मों के हिसाब किताब के अनुसार होते हैं।
इन्हीं सभी अनुभवों के सार को योगियों ने इन 72 बॉक्स में उकेर किया है, उड़ेल दिया है।
आज हम जीवन को इतनी तेजी से जी रहे हैं कि हमें यही नहीं समझ आ पता कि हमें तलाश किस चीज की है। एक लकीर के फकीर की तरह जीवन को - birth > education > profession > kids > retirement की ताल पर ताल मिलाकर चलने की कोशिश करते रहते हैं।
पाना सब कुछ है, खोने के डर में हम बार-बार गलतियां करते जाते हैं, पर उन्हें समझने का, सही करने का, वक्त ही नहीं निकाल पाते। सोचते हैं- आज यह सब हासिल करना जरूरी है। जब सारी जिम्मेदारियां पूरी हो जाएंगी, तब अपने कर्मों का गुणा-भाग कर, दान धर्म का मार्ग अपनाकर गलतियों की माफी मांग लेंगे! सिंपल!
पर जब इस जीवन के फलसफे को समझने की उम्र तक पहुंचते हैं तो पाते हैं की हम तो (यानी हमारे अंदर का body owner, हमारी जीवात्मा हमारा soul) बड़ा दुखी है!!!
क्यों - क्योंकि हम उसको (soul) समझ ही नहीं पाए कि वह क्या चाहता है ????? और अब हमारा soul फिर जन्म लेगा एक नये शरीर के रूप में..... फिर उन्हीं अवस्थाओं से गुजरेगा, फिर उन्हीं परेशानियों को झेलेगा, और अगला जीवन भी इसी जद्दोजहद में बीत जाएगा।
मोक्षपट पर पाँसा फेंककर आप इस जीवन के पथ को समझ सकते हो; कहाँ, कब और क्या गलतियाँ कर सकते हैं आप और उस गलती का क्या असर पड़ेगा आपके जीवनपथ पर। गलती करने से कैसे बचा जा सकता है; अगर गलती हो चुकी है तो उसके असर को कैसे न्यूनतम किया जा सकता है ; अपने अंदर, अपने आसपास क्या बदलाव लाना चाहिए ताकि यह जन्म हम पूर्णतः जी सकें, अच्छे कर्मों को सहेजते हुए, गलतियों को सुधारते हुए, ना कि भुगतते हुए।
यह खेल योगियों को अपनी राह से भटकने से बचाता है, भोगियों को सही राह सुझाता है। तभी राजा महाराजा भी साल में एक बार इस खेल को अवश्य खेलते थे - बैकुंठ एकादशी को ।
आप भी इस परंपरा को अपना सकते हैं।
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