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मूलाधार चक्र

रीढ़ की हड्डी के आधार पर, गुदा [anus] और जननांग [urogenital organ] के बीच के त्रिकोणीय भाग [triangular area] को मूलाधार चक्र कहा जाता है। यह सुषुम्ना (रीढ़ की हड्डी) के मुख से जुड़ा होता है और जननांगों के नीचे और गुदा के ऊपर स्थित होता है। यह सुषुम्ना (रीढ़ की हड्डी) के चारों ओर तंत्रिका जाल बनाता है।

मूलाधार चक्र का यह क्षेत्र पैल्विक अंगों, यानी मलाशय [rectum], गर्भाशय [uterus], मूत्राशय [bladder] और वृषण [testicles] का प्रतिनिधित्व करता है। यह चक्र प्रजनन अंगों [reproductive organs], प्रतिरक्षा प्रणाली [immune system] और बड़ी आंत [large intestine] की कार्यप्रणाली को नियंत्रित करता है। इसकी निष्क्रियता से आलस्य, मोटापा, गठिया, सूजन आदि की समस्या होती है। इसकी सक्रियता से कुंडलिनी जागरण होती है।

यह अपान वायु के लिए भूमि है। अपान वायु का कार्य वीर्य, मूत्र और मल का उत्सर्जन [elimination] करना और भ्रूण का प्रसव [parturition] कराना भी है।

इसमें लाल रंग की चार पंखुड़ियाँ हैं, जिनपर सुनहरे रंग के चार अक्षर यानि वं, सं, शं और षं हैं।

मूलाधार चक्र का मुख्य प्रतीक सात सूंड वाला हाथी है। आम तौर पर हाथी समृद्धि और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है, और भारतीय पौराणिक कथाओं में हाथी ब्रह्मा, निर्माता का वाहक है, जिन्होंने ज्ञान और सृजन को जन्म दिया। हाथी एक मूल्यवान जानवर है जो अपने मालिक के लिए धन लाता है, और ऐसा कहा जाता है कि पूर्ण विकसित नर हाथी के मस्तिष्क में अद्वितीय मूल्य का एक शानदार मोती पाया जाता है। यह ज्ञान के खजाने का प्रतीक है जो मूलाधार चक्र में छिपा हुआ है और इसे चेतना के प्रकाश में उठाया जाना चाहिए।

हाथी की सात सूंडें शरीर के सात मूल पदार्थों के साथ-साथ सप्तधातु, सात खनिज और सात बहुमूल्य रत्नों का प्रतिनिधित्व करती हैं जो पृथ्वी में पाए जाते हैं। सप्तधातु चेतना के सात स्तरों का भी प्रतीक है: अचेतनता, अवचेतना, स्वप्न चेतना, जाग्रत चेतना, सूक्ष्म चेतना, सर्वोच्च चेतना और ब्रह्मांडीय चेतना।

मूलाधार चक्र में एक महत्वपूर्ण प्रतीक शिव लिंगम है, जो रचनात्मक चेतना का सूक्ष्म प्रतीक है। एक साँप शिव लिंग के चारों ओर साढ़े तीन बार चक्कर लगाता है। सर्प की तीन परिक्रमाएँ चेतना के पहले तीन स्तरों का प्रतिनिधित्व करती हैं - अचेतन, अवचेतन और चेतन; और आधा मोड़ जाग्रत अतिचेतना को दर्शाता है। चूंकि सांप का सिर नीचे की ओर इशारा कर रहा है, यह एक संकेत है कि विकास प्रक्रिया भी फिर से नीचे की ओर जा सकती है। बुद्धि अपने आप विकसित नहीं होती; विचारों को शुद्ध करने और कार्यों को अच्छे की ओर ले जाने के लिए निरंतर, सचेत प्रयास की आवश्यकता होती है। चेतना का विकास समय के साथ जुड़ा हुआ है, और साँप को काल (समय, अतीत या मृत्यु) के नाम से भी जाना जाता है।

मूलाधार चक्र का एक अन्य प्रतीक एक उल्टा त्रिकोण है। नीचे की ओर इंगित करने वाला सिरा इंगित करता है कि हम अपने आध्यात्मिक विकास की शुरुआत में हैं; और जो किनारे ऊपर और बाहर की ओर फैले हुए हैं वे विकासशील चेतना की दिशा दर्शाते हैं।


तत्व: मूलाधार चक्र आपके अंदर पृथ्वी तत्व को नियंत्रित करता है। इसका संबंध

  • शारीरिक रूप से - आपकी पारिवारिक जड़ों, आपके माता-पिता, आपकी पृष्ठभूमि, आप कैसे बड़े हुए, से है। आप भौतिक संसार के साथ कैसा व्यवहार करते हैं यह भी मूलाधार चक्र द्वारा नियंत्रित होता है। जब यह चक्र अवरुद्ध या असंतुलित हो जाता है, तो इससे आंतों और निचले शरीर में दर्द हो सकता है। अवरुद्ध मूलाधार चक्र के शारीरिक लक्षणों में वजन बढ़ना, वजन कम होना, कब्ज, कमर-दर्द और लगातार मूत्र विसर्जन शामिल हैं।

  • भावनात्मक रूप में - आप सुरक्षित और स्थिर महसूस कर रहे हैं या नहीं - इस दुनिया में अपना स्थान सुरक्षित महसूस कर रहे हैं, अपने शरीर में सुरक्षित महसूस कर रहे हैं, सुरक्षित और आश्वस्त महसूस कर रहे हैं यह भी मूलाधार चक्र द्वारा नियंत्रित होता है।

  • मानसिक तौर पर मूल चक्र में स्थिरता इस बात पर प्रभाव डालती है कि क्या आप अपना ख्याल रख सकते हैं, क्या आप अपने आप को महसूस करते हैं, क्या आप इस बात की सराहना करते हैं कि आप अन्य मनुष्यों से कम नहीं हैं और क्या आप अपने तन में सहज महसूस करते हैं। एक संतुलित मूल चक्र आपको व्यावहारिक और वर्तमान में उपस्थित रहने में सक्षम बनाता है। मानसिक रूप से, अवरुद्ध मूलाधार चक्र आपको अस्थिर और विचलित महसूस कराएगा। आप एक कार्य से दूसरे कार्य की ओर भागेंगे, सुस्ती और थकावट महसूस करेंगे और कार्रवाई करने में असमर्थता महसूस करेंगे। अटके रहने या आगे बढ़ने में असमर्थ होने की भावनाएँ भी उत्पन्न होती हैं। अवरुद्ध मूलाधार चक्र के साथ, तनाव, चिंता और अवसाद की संभावना बढ़ जाती है।

एक साधारण प्रश्नौत्तरी आपकी मदद कर सकती है -

1]अपने आप से पूछें कि क्या आप सुरक्षित महसूस करते हैं? यदि नहीं तो क्यों?

2]जब आप खड़े होते हैं, तो क्या आप अपने पैरों के चारों कोनों को महसूस करते हैं और क्या आप आराम, मजबूत और फिट महसूस करते हैं?

3]क्या आप व्यावहारिक हैं?

4]क्या आप दैनिक आधार पर और आसानी से मल त्याग कर सकते हैं?

5]क्या आप अपने शरीर में सहज महसूस करते हैं?

अगर अधिकतर उत्तर हाँ हैं तो आपका मूलाधार चक्र स्थिर है।


चक्रों के भौतिक शरीर में उपस्थिति को लेकर कई रिसर्च किए गये हैं। इनके आधार पर मूलाधार चक्र को perineal क्षेत्र में inferior hypogastric plexus के रूप में सभी उपरोक्त क्रियाओं के लिए जिम्मेदार पाया गया। मूलाधार चक्र की अधिष्ठात्री देवी डाकिनी हैं। उपनिषद में परिभाषित इसकी विशेषताओं के आधार पर मूलाधार हमारे शरीर में न्यूरोनल प्लेक्सस [neuronal plexus] के माध्यम से सूचनाएँ ले जानेवाले संवेदी आवेगों [sensory impulses] का प्रतिनिधित्व करता है। इससे सिद्ध होता है कि देवी डाकिनी सजगता या क्रियाओं के संवेदी अभिवाही केंद्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं।  डाकिनी देवी वे परिधीय गैन्ग्लिओनिक कोशिकाएं [peripheral ganglionic cells] हैं जो मूलाधार चक्र की सभी चार पंखुड़ियों या उप-प्लेक्सस [sub-plexuses] से सेक्रल पैरासिम्पेथेटिक केंद्र पर पहुंचानेवाले संवेदनाओं [sacral parasympathetic afferents] को प्राप्त करती हैं।


जैसे किसी इमारत की बुनियाद सबसे महत्वपूर्ण होती है, उसी तरह मूलाधार सबसे महत्वपूर्ण चक्र होता है। अगर यह आधार स्थिर नहीं हुआ, तो इंसान न तो अपना स्वास्थ ठीक रख पाएगा, न ही अपनी कुशलता और संतुलन ठीक रख पाएगा। अगर आपका मूलाधार मजबूत होगा, तो अपनी इच्छानुसार कभी भी किसी भी क्षेत्र में शुरूआत करने और जोखिम उठाने की क्षमता स्वयं आपके पास आ जाएगी। जब हमारी ऊर्जा या चेतना एक सकारात्मक प्रवाह में ऊपर की ओर निर्देशित होती है, तो पहला चक्र हमें ध्यान केंद्रित करने, दृढ़ रहने और सत्यनिष्ठ रहने में मदद करता है। हालाँकि, जब हमारी ऊर्जा नकारात्मक दिशा में जाती है, तो यही गुण हमें जिद्दी और अनम्य बना सकते हैं। यह अस्वस्थ लगाव का कारण भी बन सकता है और हमें उन लगावों को खोने का डर भी दे सकता है।

हमारे पिछले जन्मों के कर्म मूलाधार चक्र में रहते हैं, और इनसे इस वर्तमान जीवन (प्रारब्ध कर्म) में अनुभव होने वाले सुख या दुख उत्पन्न होते हैं। हम जो भी कार्य करते हैं या करते हैं उससे मूलाधार चक्र में एक बीज बोया जाता है जो देर-सबेर प्रकाश में आएगा; और यही बीज हमारा भाग्य निर्धारित करते हैं।


मूलाधार चक्र मनुष्य की पशु प्रवृति को नियंत्रित करता है। अर्थात खाना, सोना, बच्चे पैदा करना व अन्य भोग। सुप्त अवस्था में मूलाधार तामसिक प्रवृति को बढ़ाता है। सोते रहना, काम में मन नही लगना, विभिन्न व्यंजनों के प्रति आसक्ति, अत्यधिक सेक्स। मानसिक गतिविधि की अधिक मात्रा और इंद्रियों के आनंद में अत्यधिक भोग इस केंद्र पर रुकावट पैदा कर सकते हैं।

बहुत ही कम व्यक्ति अपने चक्रों को जाग्रत कर पाते हैं जिसके कारण उनकी चेतना मूलाधार चक्र में ही फंसी रहती है और उनके देह त्याग के समय में भी उनकी चेतना वहीं रहती है। अगर आप भोग, विलास, संभोग, आलस और अधिक निद्रा को अपने जीवन में प्रवेश करने देते हो तो आपकी चेतना और उर्जा मूलाधार चक्र के आसपास ही एकत्र हो जाती है. इसको जाग्रत करने के लिए आपको इनसे सब दुष्ट विचारों से बाहर निकलना होता है जैसे वासना, संभोग, भोग, घमंड और नशा इत्यादि। इसका दूसरा नियम है कि आप यम और नियम का हृदय से पालन करें और साक्षी भाव में रहें। जाग्रत मूलाधार में उपरोक्त लक्षणों में कमी हो जाएगी। मात्र उच्च उद्देश्य से कार्य सम्पन होंगे। 

जब किसी व्यक्ति का मूलाधार चक्र जाग्रत हो जाता है तो उसके स्वभाव में परिवर्तन को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। व्यक्ति निर्भीक हो जाता है और उसके अंदर वीरता की भावना उत्पन्न हो जाती है; उसके मन में आनंद का भाव भी उत्पन्न हो जाता है।

मूलाधार चक्र के जागरण से संवेदी धारणाओं में वृद्धि हो सकती है, विशेष रूप से गंध और सुनने की इंद्रियों का शोधन, ताकि हम उन सुगंधों और ध्वनियों से अवगत हो सकें जो दूसरों के लिए बोधगम्य नहीं हैं। कुछ लोग आभामंडल देख पाते हैं या दूसरों के विचारों और मनोदशाओं को महसूस कर पाते हैं।


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मूलाधार चक्र को जागृत कैसे करें

  • इस चक्र के लिए लाल रंग है, इसलिए अपने ध्यान के दौरान अपने मूलाधार चक्र में इस रंग की कल्पना करना या इस रंग को अपनी अलमारी (विशेषकर लाल कपड़े, जूते या मोज़े) में जोड़ना बहुत अच्छा है।

  • मूलाधार चक्र के लिए लं बीज मंत्र का जाप करें।

  • नंगे पैर धरती पर चलें।

  • अपने आप को धरती से जुड़ते हुए कल्पना करें, जैसे कि आपके तलवों से जड़ें धरती की गहराई में बढ़ रही हों।

  • अपने मूलाधार से जुड़ें! उस स्थान को महसूस करें, उसे आराम दें, वर्तमान क्षण में आराम करें और चुपचाप दोहराएं: मैं सुरक्षित हूं (या ऐसा कुछ जिसके साथ आप सहज महसूस करते हैं)। साथ ही ज्ञान, पृथ्वी, अपान व प्राण हस्त मुद्रा का अभ्यास करें।

  • सीधे लेटकर दोनों हाथों के अंगूठों को शेष उंगलियों के बीच दबाकर मुट्ठियां बना लें। अब धीमी-गहरी श्वास भरते हुए गुदामार्ग को सिकोड़ें और सांस छोड़ते हुए गुदामार्ग को ढीला छोड़ दें।

  • इस चक्र के देवता श्री गणेश है अतः इस चक्र पर ध्यान लगाते हुए भगवान गणेश जी के मंत्र का जाप करने से यह चक्र जागृत होता है । मंत्र इस प्रकार है : ॐ गं गणपतये नम:।।






 
 
 

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